क्रम संख्या २१६-२३६

२१६. जिज्ञासु:- महाराज जी मैं आपसे ये पूछना चाहती हूँ अभी आपने कहा कि यमराज भी नहीं जानता कि आत्मा क्या है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- आत्मा नहीं जीव।

२१७. जिज्ञासु:- जीव क्या है? तो उनको दण्ड कैसे देते हैं वो?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। परमेश्वर की एक प्रक्रिया है। जैसे आटोमेटिक मशीन है। जैसे प्रिंटिंग प्रेस है। आटोमेटिक प्रेस है। इसमें हम पेपरसीट लाएँगे उसमें हम डालेंगे। तो उस मशीन की सेटिंग ऐसी बनी हुई है कि यहाँ पेपर डालेंगे तो आगे पेपर फोल्ड हो जाएगा, मुड़ जाएग, आगे जाकर प्रिन्ट हो जाएगा, आगे जाकर फेंका जाएगा। उसके आगे फोल्ड होकर किताब बन जाएगी, बन जाएगा। उसके आगे जाकर स्टिचिंग हो जाएगा। उसके आगे जाकर कटिंग हो जाएगा। आगे जाकर किताब बन जाएगा। यह यानी इससे भी बड़ा और कारोबार ले लीजिए। शुगर फैक्ट्री आप देखिए चीनी मिल। डाक डोंगा हैं, ट्रक से किरान उठाकर के और पूरी रख दिया। बैलगाड़ी से है तो पूरी गाड़ी उसमें उड़ेल दिये और वो नीचे पट्टा है चल रहा है। वो ले गया आगे मुँह पर छुरी है। ३२ छुरी है। वो गन्ने को चीर देती है। गन्ने को चीरती है। आगे उसकी सेटिंग है बेलन का, वो गन्ने को कूटता है। उसके बाद सेटिंग है पाइप का तो रस जो है पाइप से चला जाता है टेंकर में और जहाँ ब्यावल हो रहा है। और जो उसका सोया-खोया है यानी वो जो है बाहर जाकर गिर जाता है मैदान बना हुआ है वहाँ। वो ब्वायल जाकर टंकी में गया तो ब्वायल हुआ।ब्वायल हुआ तो पूरा ब्वायल होते हुए फिर उसमें से दूसरी टंकी में गया उसमें मथनी है मथती है। फिर तीसरे में गया मथनी में मथती है। ऐसे करके तीसरे चौथे जाते जाते वो चीनी बनकर गिरना शुरू कर देता है। तो मिल के गेट में गन्ना घुस जाता है और पिछले गेट के बाहर से चीनी बोरा बंद हो कर निकलता है। जगह-जगह सारी मशीनें सेट हैं और छोड़ दीजिये। अब इस मशीन को ले लीजिए। इसमें भी किरान का ये बाँह भुजा है यानी उसमें पाँच उंगली होती है, पहुँचा होता है, कोहनी होता है। इसी पर बना है। एक गन्ना ले लिया सीधे खड़ा इसे दोना के मुँह में डाल दिया। ३२ छुरी इसमें भी है ये उसको चीरी और उसी ३२ में बेलन बना हुआ है। ये उसको चूस दिया। चूसकर रस के लिए पाइप बना हुआ है अंदर गया। छोड़ा के लिए खोया के लिए बाहर जगह है रख दिया, बाहर फेंक दिया। वो रस गया और रस ब्वायल हुआ, मंथन हुआ शुगर बना तो यहाँ शुगर के बाद शुगर फैक्ट्री नहीं लगी है। लेकिन इसमें शुगर के बाद ग्लूकोज फैक्ट्री है। शुगर चला गया ग्लूकोज में। ग्लूकोज बनकर के यहाँ बाहर मरीज को देना है वहाँ उसके बाद मालटोज फैक्ट्री बनी है इसमें। तो ग्लूकोज दो भाग हुआ तो मालटोज बन गया। मालटोज माने कोयला पानी। कोयला पानी माने सी ग्लूकोज का है। C6H12O6 ये ग्लूकोज है। C6H12O6। 6 कामन ले लीजिए तो 6C (H२O) हो जाएगा। आगे चलिये। दो भाग ग्लूकोज का लीजिए। माल्टोज बनेगा। एक बार पानी निकाल दीजिये। H२O निकाल दीजिये बचा क्या। C12H22O11 यानी एक भाग माल्टोज और एक एक भाग पानी और वो माल्टोज जाकर के बाहर माल्टोज आएगा। बनकर के फैक्ट्री हमारा फैक्ट्री है। वो हमारे आपके खाने के लिए है। तो इसमें माल्टोज के बाद ब्लड फैक्ट्री हमारा फैक्ट्री है। वो हमारे आपके खाने के लिए है। तो इसमें माल्टोज के बाद ब्लड फैक्ट्री है। तुरंत ब्लड बन गया। माल्टोज जाकर के ब्लड बनता है—हिमोग्लोबिन। तब उसके बाद हिमोग्लोबिन से मिलकर माल्टोज हो गया। अब आगे बढ़ा तो रक्त बना। रक्त बना यदि बाहर से रक्त की कोई फैक्ट्री अभी धरती पर कोई अभी धरती पर कोई अभी नहीं बनी है। तो रक्त क्या है? रक्त में भी दो तरह के जीवाणु होंगे, विषाणु होंगे। एक हो गया WBC व्हाइट ब्लड कार्पसेल्स वो सेनानी है। वो रक्षक है शरीर का। और दूसरा RBC यानी रेड ब्लड कार्पसेल्स यानी ये किसान है। व्यवस्थापक है। तो इस तरह से सारी फैक्ट्रियाँ इसमें है। डाले गन्ना फेंका गया बाहर, मल गया बाहर और बीच में जो उसका सर तत्त्व था ऊर्जा बनकर के शरीर में प्रयोग हो गया। तो उसी तरह से जैसे आटोमेटिक मशीन में होता है। ठीक उसी प्रकार से यह व्यवस्था है।

२१८. जिज्ञासु:- एक बात और पूछना चाहती हूँ की कहा जाता है कि मरने वालों की गले में यदि तुलसी का माला हो तो वह नरक लोक नहीं जाता। वह जाता कहाँ जाता है?

संत ज्ञानेश्वर जी:- ये उन ढोंगी पाखंडियों की बात है जो धंधेबाज हैं। जिन्हे नरक-स्वर्ग का अता-पता नहीं, अपने जीव का ही अता-पता नहीं, वो क्या जाने नरक-स्वर्ग क्या होता है? ये पंडितजन क्या जाने नरक-स्वर्ग क्या होता है? जिसको उन जीवों का अता-पता नहीं है। नरक-स्वर्ग पूछना हो तो ज्ञानी से पुछ लो। तत्त्वज्ञानदाता से पूछो न, कौन नरक में जाता है, कौन स्वर्ग में जाता है? कौन ब्रह्मलोक-शिवलोक जाता है, कौन अमरलोक जाता है? वो खाली बोलेगा नहीं, दिखलाएगा भी। ये पंडित क्या जाने कि ये तुलसिया ये कुल क्या करेगा? अरे है मान्यता है। हे कुछ नहीं है। हाँ तुलसी जितने वस्तुयें है पदार्थ छोटे पौधों में तुलसी धरती की सर्वश्रेष्ठ पौधा है। तुलसी उन सभी लक्षणों से युक्त है जो मानवीय रक्षा-व्यवस्था में सहायक है। तुलसी के समान दूसरा कोई जैसे पत्ता-वत्ता उस रेंज के कोई नहीं है। दूब------घास में दूब जैसे कोई पत्ता नहीं है। क्यों? इसलिए कि यानी सीधे घास सीधे यानी उसके जैसे कोई टानिक है ही नहीं। लोहासर आप लीजिए। लोहासर आप ले लीजिए। और दूब का एक गिलास रस दूसरा कोई पीने लगे, पीसकर के गाड़कर के। १५-२० दिन बाद देखिए कि लोहासर वाले की स्थिति क्या होती है और दूब वाले की स्थिति? चेहरा दूब वाला चमक जाएगा। उसमें ४६ परसेंट लोहासर में कहा जाता है और इसमें १०० परसेंट रहता है। अरे आप दूब खाने लगे तो और कुछ खाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। घोड़ा शक्ति का मापक है। दूब मुख्य आहार है इसका। दूब, गेंहू का भूसा और चना। तीनों अपने आप में सर्वश्रेष्ठ जगह पर है। हल्दी मशाला में पहले नम्बर पर है-----हल्दी। दही खाद्य पदार्थों पर पहले नम्बर पर है। गुड़ खाद्य पदार्थों में है, ठोस पदार्थों में है। यानी ये जो पञ्च द्रव्य में बना है जो हम लोग छठ में बनाते हैं। दही लिए, सेंदुर लिए, गुड़ लिए, दूब लिए,चावल लिए ये पञ्च द्रव्य छठ कहलाता है। ये पाँचों अपने क्षेत्र के श्रेष्ठ पदार्थ हैं। यानी तुलसी तुलसी एक पौध के सभी गुणों से सम्पन्न पौध है। यदि उसके संपर्क में रहा जाय तो दूरगामी लाभ मिलता है। पहला बीमारियों की औषधी है। सकड़ों बीमारियों की औषधी है। ये कंठी यदि तुलसी का माला पहन रही हैं तो ये व्यर्थ नहीं है। लेकिन ये लाभ जीव को नरक नहीं ले जाने देगा, स्वर्ग नहीं जाने देगा। ये पोंगा पंडितों की पोंगी बकवास है।

२१९. जिज्ञासु:- अभी आपने परसों बताया था कि लोग दुर्गा जी को पूज करके दोब देते हैं। गणेश जी को दोब देते हैं। क्या लेखक या वैज्ञानिक ने लिखा था कि पूज लीजिए और दूब दीजिये।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- वो क्या जाने वैज्ञानिक जी क्या होती है दुर्गा जी। लेखक और वैज्ञानिक क्या जाने कि दुर्गा जी माने क्या होता है? मैं दिखाता हूँ, मैं दिखाऊँगा दुर्गा जी को। २१ तारीख को आदिशक्ति को दिखाऊँगा। आदिशक्ति तो दिखेगी ही दिखेगी २१ तारीख को ही दिखेगी। और दुर्गा सप्तसती ले लीजिए। दुर्गा सप्तसती ले लीजिए। कौन पंडित जाने कि दुर्गा सप्तसती क्या है? दुर्गा तो..........वो तो ज्ञान का ग्रन्थ है। यानी जरा दुर्गा सप्तसती लाना जी माँगा कर डील करूँ। उसमें सप्तसती में असली चीज है वो तो कोनो जानता ही नहीं। वो तो पंडित सब स्वाहा कर देते हैं। अभी दुर्गा सप्तसती की पाठ-विधि शुरू होगा तो प्रारम्भ में क्या है------------
ॐ ऐं आत्मतत्त्वम् शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ हीं विद्यातत्त्वम् शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ हीं शिवतत्त्वम् शोध्यामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐ हीं क्लीं सर्वतत्त्वै: शोधयामी नमः स्वाहा।
ये चार मन्त्र पहले है और तब पाठ-विधि ॐ विष्णु विष्णु विष्णु हो रहा है। तो ये क्या मन्त्र कह रहा है। विद्यातत्त्वम्  शोध्यामि, शिवतत्त्वम् शोधयामी सर्वतत्त्वै शोधयामी। यानी तत्त्व आत्मतत्व का शोध करें। विद्यातत्त्व का शोध करता हूँ----------शोधयामी। आत्मतत्त्व का खोज करता हूँ--------शोध करता हूँ। विद्यातत्त्व का शोध करता हूँ। आत्मतत्त्व का खोज करता हूँ--------शोध करता हूँ। विद्यातत्त्व का शोध करता हूँ। शिवतत्त्व कल्याण तत्त्व का शोध करता हूँ। सर्वतत्त्वै इस ब्रह्माण्ड का सम्पूर्ण तत्त्व जहाँ है उसका शोध करता हूँ। शोध करने को कहा गया लेकिन पण्डित जी लोग क्या किए। पहले ऐं और पीछे लगा स्वाहा। मन्तर बनाकर के नमः स्वाहा कर दिये। शोध मिलेगा तो स्वाहा कर दिये। यही तो पण्डित जी लोग हैं। करना है शोध और कर दिये नमः स्वाहा। अब जो है दुर्गा जी जो अदिशक्ति थी उसको जानने का कोशिश करो। वो धसा ही नहीं जा सकती। वो तो थी, है, और सृष्टि रहने पर रहेगी।

२२०. जिज्ञासु:- तो क्या उन लोगों को दोष नहीं लगेगा जो मूर्ति बनाकर पूज देते हैं, विसर्जित कर देते हैं?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- भइया सब तो दोष ही दोष में है। किसको-किसको दोष लगेगा, नहीं लगेगा कहूँ। दुर्गा जी धसाने वाले को दोष नहीं लगेगा? दुर्गा जी धसाने-धसाने वाला हो गया तो जब बनाने वाला माना जाएगा तो धसाने वाला क्यों नहीं हो जाएगा। दुर्गा जी बनाने की वस्तु हैं। जो बनने वाली दुर्गा जी होंगी तो धंसेंगे नहीं तो हर साल बनते रहेंगे तो कहाँ दुर्गा जी रखा जाएगा, कितना? कहाँ रखा जाएगा इतने दुर्गा जी लोगों को? और कुछ?

२२१. जिज्ञासु:- एक बात और पूछना चाहती हूँ जैसे यज्ञ-हवन होते हैं और कथा-पुराण होते हैं तो स्वाहा क्यों बोला जाता है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- सबकुछ खतम हो गया। इसलिए स्वाहा। मैं पंडित जी वाला थोड़ी कह रहा हूँ मैं अपना वाला कह रहा हूँ कि सब कुछ इनका स्वाहा हो गया। अब इसमें कुछ बचा नहीं। और पंडित वाला अर्थ है आभा और स्वाहा ये तो यज्ञ की पत्नी है। उनके वो सुपुर्द करते हैं लोग। और हमारा अर्थ है सब इनका स्वाहा हो गया। सब इनका खत्म हो गया। कुछ रह ही नहीं गया। मति ही भ्रष्ट हो गई। यज्ञ से कहीं भगवान् मिलता है। कहीं यज्ञ में भगवान् मिलता है। फिर वही बात। आगे चलूँगा तो कहेंगे सब हमारा यज्ञ का खतम कर रहे हैं। भइया कुछ नहीं करने से तो कुछ अच्छे हैं स्वाहा करने दीजिये। बोलूँगा तो शुरू हो ही जाएगा। भोजन करते समय तो हमको थोड़ा समाचार वगैरह कुछ सुनने को मिलता है, उतने तो समय मिलता है। चाहे टी॰वी॰ देख लिया, चाहे समाचार सुन लिया। तो एक दिन सुने इस M.P. का ही प्रचार था। प्रदूषण मुक्त बनाना। इन मतिभ्रष्टों को प्रदूषण मुक्त में क्या दिखाई दिया तो कोनो मूँगफली वाले के ठेला पर धूपबत्ती-अगरबत्ती जल रहा था तो अगरबत्ती को रोकना शुरू किया कि प्रदूषण फैल रहा है। रे शैतान कहीं का, इतनी गाडियाँ धुआँ छोड़ रही है इससे प्रदूषण नहीं हो रहा है। और उन शैतान अगरबत्ती के धुआँ का प्रदूषण रोक रहा है। अगरबत्ती के धुआँ का प्रदूषण रोक रहा है। इन प्रदूषण पढ़ने-पढ़ाने वाले मतिभ्रष्टों को कौन समझावे? कि बीड़ी-सिगरेट का प्रदूषण नहीं दिखाई दे रहा है? तो कोनो बीड़ी-सिगरेट वाला नहीं मिला, रोकने के लिए। अरे गाड़ी वालों को क्यों नहीं रोक रहा है इतना धुआँ फैला रहे हैं सब। ऐ कूड़ा-करकट जलाते हैं इनको क्यों नहीं रोक रहा है। कूड़ा अगरबत्ती के धुआँ से प्रदूषण फैल गया। ऐसा-ऐसा तो प्रचार है, ऐसी-ऐसी तो व्यवस्था है इन मतिभ्रष्टों की। सबका पोलम-पोल हो रहा है। लग रहा है धरती को नाश ही करायेंगे, भगवान् तो है ही है, सम्हलेगा तो सम्हलेगा, लय होगा तो होगा नहीं तो प्रलय तो होगा हो होगा, बाइबिल कह रही है कि प्रलय हो जाएगा। नया सृजन होगा। कुर्रान शरीफ का कहना है कि इस समय जो कयामत आएगा और सारा सर्वनाश हो जाएगा। सृजन होगा कि नहीं मौन। बाइबिल कहती है कि नाश तो होगा, सारे बदल दिये जायेंगे, सूरज नष्ट हो जाएगा, चन्द्रमा नष्ट हो जाएगा, धरती नष्ट हो जाएगी, आसमान नष्ट हो जाएगा और नया सृजन होगा। तो कुर्रान कहता है नष्ट सृजन का नाम नहीं। बाइबिल कहती है नष्ट होगा लेकिन सृजन होगा फिर से। और पुराण कहता है, भागवत्त महापुराण-------कल्कि अवतार आएगा संवारेगा, सुधारेगा, नहीं सुधरेगा तो........। जब भगवान् आता है तो सुधारता-संवारता है और नहीं सुधरेगा-संवरेगा तो क्या करेगा? प्रलय करके नया सृजन करेगा। तो इस तरह से बड़ी विचित्र स्थिति पहुँच गई है धरती की दुनिया की। भगवान् को तो धरती को ठीक करना ही करना है। भई जितने दुष्ट-दुर्जन हैं इनका सफाया तो करेगा ही करेगा और सज्जन लोग भी नहीं सम्हले तो सर्वनाश ही होगा। नया सृजन होगा। बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय sss

२२२. जिज्ञासु:- प्रभु मैं जानना चाहता हूँ कि जैसे कि पाप नाशिनी नदी गंगा है तो उसमें नहाकर...........

संत ज्ञानेश्वर जी:- किसने कहा कि पाप नाशिनी गंगा है?

२२३. जिज्ञासा:- नहीं जैसे वेदों के अनुसार कहते हैं कि......

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- अरे भाई गंगा माने क्या? सद्गुरु की चरणामृत । जब ब्रह्मा जी विष्णु जी से ज्ञान लिए। जब विष्णु जी से ज्ञान लिए तो ज्ञान लेने पर उनकी चरणामृत भी लिए। चरणामृत लेकर अपने कमंडल में रखे और वही अपना रोज-रोज थोड़ा दो-एक बूंद पान करते थे। जब भगीरथ को चिन्ता हुआ तो गंगा जी को धरती पर लाने गया। तो शंकर जी की पूजा की तो जा-जा ब्रह्मा जी को कहो उनके कमण्डल में है। तो ब्रह्मा जी का पूजा किए तो ब्रह्मा जी कहे की इतना पवित्रम् चरणामृत है कि धरती सह पाएगी? यह धरती में गिराने के लिए नहीं है। पूछे कि कौन है कौन रोकेगा? तो वही शंकर जी रोक सकते हैं क्योंकि अध्यात्म के शिरमौर्य हैं तो हुआ कि शंकर जी को खुश करो तो शंकर जी को खुश किए तो कहे कि ठीक है मैं उनका भार रोक लूँगा। तो शंकर जी अध्यात्म के शिरमोर थे तो उनकी भी हिम्मत शरीर के अन्य पर नहीं वो चरणामृत थी भगवान की इसलिए अपनी जटा में लिए, सिर पर लिए चरणामृत कोई देह पर नहीं लगता है सिर पर लेता है ऐसा होता है कि नहीं होता है। तो ज्ञान माने सद्गुरु की चरणामृत। वो थी उस समय अब तो इतना प्रदूषित हो गई है, तो गंगा गंगा अब नहीं है। गंगा गंगा रह कहाँ गयी है। गंगा का असली मूल रूप क्या है। वो गंगा पाप नाशिनी नहीं है। सद्गुरु की चरणामृत पापनाशिनी  होता है। गंगा माने सद्गुरु की चरणामृत। वो तब थी चरणामृत अब तो वो गंदा हो गयी गंगा। ऐसा ही है।

२२४. जिज्ञासु:- महाराज:- मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ।

सन्त जज्ञानेश्वर जी:- बड़े खुशी से।

२२५. जिज्ञासु:- जो भी उत्तर दीजिएगा संक्षेप में।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- कितना संक्षेप। आपके हर प्रश्न का उत्तर दो सेकण्ड में दूँगा। समझेंगे कि नहीं समझेगे मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं। बोल लीजिए।

२२६. जिज्ञासु:- आप तत्त्वज्ञानदाता सद्गुरु हो कि परमात्मा के कलियुगीन अवतार?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- तत्त्वज्ञानदाता।          

२२७. जिज्ञासु:- मेरे अन्तःकरण में क्या है आप अंतरर्यामी हैं परमशब्द में हो।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- किसी गोटा वाले से पूछिये। किसी गोटा वाले से पूछिये। आगे चलिये।

२२८. जिज्ञासु:- क्या शब्द अक्षर ॐकार परमात्मा हो कि नहीं?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- नहीं।

२२९. जिज्ञासु :- शब्द हो परमेश्वर है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- हाँ, है।

२३०. जिज्ञासु:- गीता के अध्याय १०, २० वें श्लोक का अनुवाद करिए।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- पढ़िए.......छोड़िए, मैं गीता के श्लोक का अनुवादक नहीं।

२३१. जिज्ञासु:- साइनाईट की व्यवस्था कराई जाए इसका स्वाद आप बताइए हमारी जानने की जिज्ञासा है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- पोटेशियम साइनाईट। इसमें क्या जानना चाहते हैं?

२३२. जिज्ञासु:- इसका स्वाद।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- स्वाद, खट्टा। 

२३३. जिज्ञासु:- यह आप स्वयं खाकर दिखा दीजिये तब हमें विश्वास होगा।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- खा करके देख लीजिए।

२३४. जिज्ञासु:- गायत्री तो एक छंद वेद का है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- और क्या? ये तो मैं भी कह रहा हूँ भइया। मन्त्र ॐ देव का है। लेकिन ये सब जो है ॐ देव को नकार कार फेंक देना और झूठी और काल्पनिक गायत्री माई और गायत्री माई अरे श्रीराम शर्मा के मइया, विश्वामित्र के मइया, ये पण्डवा है इसकी मइया। ये गायत्री वालों की माई। यदि माई है तो बाप कहाँ? बिना बाप का माई? बिना बाप का माई? नहीं, नहीं। हाँ एक जगह एक्सेप्सन तो हर चीज में है। अपवाद तो हर चीज में है। अचरज में अचंभा भई, बिना बाप के लड़का भई। वो भइल कब जब ओकर माई न रहे तब। अचरज में अचंभा भई बिनु बाप के लइका भइल वो भइल कब जब ओकर माई न रहे तब। अचरज में अचंभा भई बिनु बाप के लइका भइल वो भइल कब जब ओकर माई न रहे तब। तो एक्सेप्सन तो हर चीज में है।

२३५. जिज्ञासु:- स्वामी जी आप सद्गुरु हैं आपकी बातें पूर्णतया वैज्ञानिक हैं कहीं कोई ढोंग-पाखण्ड नहीं है। जैसा कि यहाँ आने के पहले ये प्रचार था मुझे लगता है कि आपका ये धर्मरथ है ये शीघ्रता से चले ये आसुरी वृतियाँ बढ़ती जा रही हैं। और धर्म स्थापना के कार्य में हमारे जैसे लोगों का जो सहयोग हो उसे लीजिए, हम लोग आपके जो है।

संत ज्ञानेश्वर जी:- बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जयsss। हमारे भइया के इस सद्भाव पूर्ण बोली पर देहातों में क्या कहते हैं लोग। जब कोई दुआ आशीर्वाद वाला सद्भाव देता है। कहते हैं भइया आपके मुँह में फूल खूब बरसे। तो जब ऐसा सद्भावी हमारे बंधुजन आयेंगे। ८० में बनारस के दशाश्वमेघघाट पर ये धर्मद्रोही करपात्री, झूठा भगवान् अवधूतराम, ये संकटमोचन वाला वीरभद्र मिश्र जब इन सबों को थू-थू और ललकार पड़ा ८० में कि अब आडंबर-ढोंग-पाखंड छोड़ो। अब धर्म संस्थापन होगा, आडंबरी-पाखंडियों सुधार करो, पापी-कुकर्मियों सुधरो अन्यथा नाश के लिए प्रतीक्षा करो। अब भी कह रहा हूँ पापी-कुकर्मियों और आडंबरी-ढोंगियों सम्हलो, सुधार करो, अन्यथा प्रतीक्षा करो और देखते जाओ। बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय sss

जब वहाँ सत्संग भगवत् कृपा विशेष से तत्त्वज्ञान गर्जना होने लगा। तीसरी दिन सुनते ही एक बेचारा घड़ी का दुकान वाला था। बनारस में जानते होंगे गोदौलिया चौराहा पर जो सुनारपुरा को जा रहा है पूर्वी चौराहा से वही बगल में एक घड़ी की दुकान है तीसरी, चौथी। बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। 
  लेके आदमी भर नदिया, नदिया समझते हैं न, जिसमें दही जमाई जाती है तो एक मटका नदिया सफेद रसगुल्ला भरकर आया। अब रगुल जी वहाँ के महंत हैं गिरिजा मंदिर के। वो बेचारे इतने प्रभावित थे सत्संग से। कहे कि सन्त जी को सोने नहीं देता है, रेस्ट नहीं देता, तीन-तीन समय कार्यक्रम करते हैं। यहाँ बोलते रहते हैं ये सब जो है हमारे सन्त जी को तंग करके छोड़ देता है सब। अब रही भक्तिभाव वाली। वो बेचारा मिलकर रोने लगा। रगुल जी बोलने ही लगे कि सन्त जी को थोड़ा भी आराम नहीं मिलता है। हम देखते हैं कि १६-१६, १८-१८ घण्टा रोज बोलते हैं खाते कुछ नहीं और रात-दिन बोलते रहते हैं। आप लोग तंग करते हो, थोड़ा रेस्ट तो करने दो। अभी मंच से आ रहे हैं फिर मंच पर जाना है। क्यों तंग करते हो आप लोग बेचारा फूट-फूट कर रोने लगा। हमारा कोई आदमी देखा। हमसे कहा कि रगुल जी जो महंत जी हैं एक आदमी बड़ा रो रहा है मिलने नहीं दे रहे हैं। हम संदेशा भिजवाये रगुल जी को बुलवाये। हम रगुल जी कहे कि अरे भइया बड़ा भाव लेकर के कोई बाहर से आता है। बेचारा रो रहा है आपके भाव की मैं कदर करता हूँ। लेकिन बेचारे को दो मिनट के लिए मिल लेने दो भइया। कहे आप सन्त जी हैं अपने शरीर को नहीं देखते हैं शरीर आपकी एकदम रात-दिन करते-करते आपकी शरीर की दुनिया वालों को गरज है। और आप अपने शरीर को नहीं देखते हैं। जो आता है मिलिए। जो आता है मिलिए। मंच पर मिलिए, जहाँ उतरते हैं मिलिए। ठीक है मिलिए। हम कहे नहीं, नहीं, आप तकलीफ मत मनाइये। बड़ा भाव लेकर के आदमी आता है न, दो मिनट के लिए मिला दीजिये, आपके सथवे हम छोड़ देंगे। ये तो आपका बड़ा ऊँचा भाव है हमारे प्रति तो हम उसको कैसे ठुकरा सकते हैं। बेचारा आया, फफक-फफक कर रोने लगा मुड़िया रखकर के। हम कहे कि क्यों रो रहे हो। लगे चुप कराने। चुप ही न हो। क्यों? ढेर हल्ला करोगे अभी उठाकर हटा दिये जाओगे। दो मिनट के लिए कहकर बुलाये हैं रोने लगा। बात कहो न। तब वो क्या कह रहा है। सन्त जी.......२९ लाउड स्पीकर लगभग लगा था डेढ़ कि॰मी॰ में, फैला था। कहा कि हमारे सामने माइक लगा है। हम सत्संग वहीं सुनते हैं दुकान पर है और हमको लगा कि ऐसे सत्पुरुष  को धरती की आवश्यकता है समाज बदलने के लिए। लेकिन सन्त जी आपको जिंदा नहीं रहने देंगे सब बनारस वाले। ये करपात्री, ये अवधूतराम, ये पंडे आपको मार-मरवा देंगे। और कहकर रोने लगा। सन्त जी अपनी सुरक्षा बढ़ा लीजिए। ये सब जिंदा नहीं लोटने देते बनारस आने वालों को। आपको जिंदा नहीं लौटने देंगे ये सब। धरती को आपकी जरूरत है। लगा फुट कर रोने। हम कहे भइया पहले शांत तो हो। ये तेरी जो भावना है धरती को इसकी जरूरत है तो इस तेरे भाव मेरी इतनी बड़ी सुरक्षाकवच है, ये तेरा भाव मेरा बाल बांका नहीं होने देगा। ये जो तेरा भाव मुझे धरती पर रहनी चाहिए तो तेरा भाव मेरा रक्षा करेगा। भइया लो कह रहे हो तो हम सुरक्षा बढ़ा दे रहे हैं। लेकिन रोओ मत। और धरती को जरूरत है तो धरती की जरूरत पूरा करके धरती से जाएगा। जोर-जुल्मीयों को, अत्याचारी-अन्यायियों को,पापी-कुकर्मियों से धरती को खाली कराकर जायेगा। पूरी धरती को इन जोर-जुल्मी अत्याचारियों से, इन पापी-कुकर्मियों से धरती को खाली करायेगा। असत्य-अधर्म को, अन्याय-अनीति को धरती से मिटायेगा, मिटवायेगा और सत्य-धर्म-न्याय-नीति को स्थापित कर-कराकर ही यहाँ से जायेगा। बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। सत्यमेव जयते नानृतम्।
भइया के मुँह में फुल खाड़ बरसे। ये सद्भाव सब कर-करा लेगा। भइया अब तो समय हमारे प्रक्टिकल का आ गया तो कल हम आयेंगे। और लोग अपना शंका-समाधान कर लेना।

२३६. जिज्ञासु:- यहाँ पर आ रहा हूँ लेकिन आपसे संकोच वश नहीं आपसे बात हुई। हमारी ही कमी है मैं तो यही चाहता हूँ कि आप हमारा भी उद्धार करें। आप पतित पावन हैं, दयालु हैं, दीन बन्धु हैं। मैं भी अपने उद्धार की बात सोचता हूँ मानव शरीर पाकर के। मेरे ऊपर भी आप कृपा करें। मैं हाथ जोड़े हुये हूँ आपके सामने।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। सत्यमेव जयते नानृतम्।
ऐसा है ये संस्था जो है भगवान् की है। इसके सभी आश्रम भगवान् के हैं। इस संस्था के किसी भी आश्रम में रहने के लिए किसी के लिए भी किसी की सिफारिश की आवश्यकता नहीं है। जो भाई-बंधु जो कोई भी चाहे जिस लिंग-जाति-वर्ग-सम्प्रदाय का क्यों न हो, इन आश्रमों में बड़े खुशी-खुशी रह सकता है। अब रही चीजें उद्धार की बात तो कोई इस संस्था के किसी भी आश्रम में रहेगा, उद्धार तो उसका होना ही होना है। उद्धार तो उसका होना ही है। जहाँ तक रही बात ज्ञान की यहाँ तो क्लास आगे बढ़ गया। काफी आगे बढ़ गया। संसार के मिथ्यात्व का दर्शन जो स्वप्न से बदतर झूठ है। ऐसा देखा गया। सभी द्वार दर्शन बाला बात था। जो इस संस्था के लोग जो ज्ञान प्राप्त हैं वो सहज ही देखते हैं। जब चाहे शरीर को वस्त्र जैसे पहने, धारण करें, जब चाहे उतार कर रख दें। जब चाहे पहने जैसे जब चाहे कुर्ता पहने, जब चाहे उतार कर रख दें। जब चाहें पहने जब चाहे उतार कर रख दें। वैसे ही इस संस्था के ज्ञान में रहने वाले लोग जब चाहे जितनी पीड़ा में शरीर हो। जितनी कष्ट-संकट में हो इसको वस्त्रवत् उतार आनन्द में लीन हो जायें। आनन्दमगन हो जाये जब चाहें। ये दर्शन भी हो चुका। जीव का दर्शन हो चुका है। इसमें से बाहर निकलकर के सूक्ष्म दृष्टि से निदिध्यासन की स्थिति में जाकर के स्थूल और सूक्ष्म शरीर दोनों को एक साथ देखा जाता है। साथ ही यह भी देखा गया इसमें कि हम ये शरीर नहीं है। कल तक तो यहाँ के लोग ये जानते थे कि हम शरीर है, हमारा माता-पिता घर-परिवार है, हम सांसारिक है। लेकिन कल से इनको दिखलाई देने लगा कि नहीं, नहीं, हम शरीर तो है ही नहीं, हम पारिवारिक सांसारिक भी नहीं है। हमारे माता-पिता तो शिव-शक्ति-ब्रह्म-शक्ति हैं। हम तो एक जीव हैं, सूक्ष्म शरीर जीव हैं,जीव। स्पष्टतः देखा। आज का क्लास चल रहा है देखा इन लोगों ने। असदो मा सद्गमय, असत्य क्या है, इन लोगों ने स्पष्टतः देखा और उधर से अपना अपने आपको मोड़कर के सत्य में प्रवेश किया। अब सत्य की ओर कुछ अंदर पहुँच गये जीव से आगे बढ़कर के आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म-शिव के पास पहुँच गये। ये शाम शाम वाले क्लास में आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म-शिव होकर के, शायद परमात्मा-परमेश्वर की तरफ आगे बढ़ जायें। तमसो मा ज्योतिर्गमय वाला इन लोगों ने ममता-मोह रूपी अंधकार देखा। उससे अपने को बचकर के ज्योतिर्गमय की स्थिति में पहुँच गये हैं। आज शाम को वो भी पार कर जायेंगे। तो अब तो ज्ञान का क्लास है वो तो अभी संभव नहीं है। ये गाड़ी बहुत आगे बढ़ गयी। और पर करके कल खुदा-गॉड-भगवान् का दर्शन-दीदार हो जायेगा, विराट दर्शन होगा, विष्णु-राम-कृष्ण का वास्तविक तात्त्विक दर्शन होगा, मुक्ति-अमरता का बोध होगा, बात-चीत सहित सब दर्शन होगा। जैसे नारद गरुड़ बात करते थे, लक्ष्मण-हनुमान बात करते थे, सेवरी बात करती थी। जैसे उद्धव अर्जुन गोपियाँ बात करती थी। ये लोग भी वही करेंगे। जहाँ तक उद्धार की बात की है। ये तो भाई ज्ञान के क्लास में इस समय तो भाग नहीं मिल सकता। गाड़ी बहुत आगे बढ़ गई है। अब रही आश्रमों में रहने की जहाँ तक बात है इसके लिये किसी की सिफारिश की आवश्यकता नहीं है। हम नहीं भी कहेंगे आप जिस किसी आश्रम में भी जायेंगे कोई मना नहीं कर सकता। यहाँ के आश्रम किसी के बाप-दादा की जागीर नहीं है। वहाँ की सारी व्यवस्थायें परमात्मा की तरफ से हैं, प्रकृति की तरफ से है, जो कोई भी चाहे रह सकता है, ठहर सकता है। कोई रुपया-पैसा लगने को नहीं है। जब तक इच्छा हो रही है पूरी जिंदगी चाहो, पूरी जिन्दगी रहिए। हाँ, ईमान-संयम दो कायम रखियेगा। ईमान से रहियेगा, संयमपूर्वक रहियेगा। इन दो के खिलाफ कोई मरौवत नहीं होगा। सेवा कीजिये, मत कीजिये ये उतना जरूरी नहीं है लेकिन ईमान-संयम से रहना जरूरी है। शेष भगवान् जाने। तो यदि रहना चाहते हो आश्रमों में तो आप क्या आप जैसे सैकड़ों-हजारों लोग आयेंगे तब भी वहाँ किसी की सिफारिश की जरूरत नहीं है। सहज ही आप रह लेंगे। वो आश्रम परमेश्वर का है। कोई परेशानी नहीं है, कोई चिन्तन नहीं है। कौन रह रहा है, कितने रह रहे हैं? कोई बात नहीं।

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